जनता की पीड़ा से नहीं मुंह मोड़ा, देर तक दरबार सजाकर मिसाल बने एसडीएम सदर राम प्रसाद त्रिपाठी
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अयोध्या। प्रशासनिक व्यवस्था में आम तौर पर यह देखा जाता है कि जनता दरबार का समय दोपहर 12:00 बजे के बाद समाप्त कर दिया जाता है, लेकिन एसडीएम सदर राम प्रसाद त्रिपाठी ने मजदूर दिवस के अवसर पर इस परंपरा को तोड़ते हुए यह स्पष्ट किया कि जनता की समस्या का समाधान समय नहीं, समर्पण मांगता है।
आज मजदूर दिवस के दिन जहां ज्यादातर अधिकारी औपचारिकताएं निभाकर अपने दायित्वों से निवृत्त हो जाते हैं, वहीं एसडीएम सदर राम प्रसाद त्रिपाठी ने लगभग दोपहर 2:00 बजे तक फरियादियों की समस्याएं सुनीं और मौके पर ही समाधान के आदेश जारी किए। यह प्रशासनिक दायित्व और मानवीय संवेदनशीलता का दुर्लभ संगम था।
एक महिला अपनी पीड़ा लेकर जब दरबार में पहुँची और बोलते-बोलते रोने लगी, तो एसडीएम सदर राम प्रसाद त्रिपाठी ने उसे स्नेहपूर्वक समझाया—“रोने से समस्या नहीं सुलझेगी, समाधान से सुलझेगी,” और तत्काल उसकी समस्या का निस्तारण कराया।
इसी दरबार में एक और मामला सामने आया जहाँ एक पीड़ित ने बताया कि उसका विपक्षी उसकी ज़मीन पर मकान बना रहा है, जबकि जब वह स्वयं निर्माण कार्य करता है तो उसे धमकियां दी जाती हैं। इस पर एसडीएम सदर राम प्रसाद त्रिपाठी ने दो टूक कहा—“यदि उसका मकान बनेगा, तो तुम्हारा भी बनेगा,” और संबंधित अधिकारियों को तत्काल न्यायोचित कार्रवाई करने के निर्देश दिए।
पत्रकारों द्वारा जब उनसे यह पूछा गया कि जनता दरबार आज निर्धारित समय से काफी देर तक क्यों चला, तो उन्होंने मुस्कराते हुए कहा—“जब तक जनता है, तब तक दरबार है। जब जनता नहीं, तब दरबार नहीं। हर एक नागरिक की समस्या को सुनना और उसका समाधान करना हमारा परम कर्तव्य है। अगर जनता संतुष्ट होगी, तभी प्रशासन का काम सफल माना जाएगा और तभी एक खुशहाल भारत का निर्माण संभव है।”
एसडीएम सदर राम प्रसाद त्रिपाठी का यह कदम न केवल अयोध्या के प्रशासनिक क्षेत्र में एक मिसाल है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि अगर अधिकारी संवेदनशील हों, तो जनता को न्याय पाने के लिए दर-दर भटकना नहीं पड़ता।
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